इस कहानी में छिपा है गोवर्धन पर्वत की घट रही ऊंचाई का रहस्य
गोवर्धन पर्वत को भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र देव के प्रकोप से गोकुल वासियों को बचाने के लिए तर्जनी उंगली पर उठा लिया था| उस समय से इस त्योहार को मनाने की परंपरा चली आ रही है|
ऐसी मान्यता है कि 5,000 साल पहले यह पर्वत करीब 30,000 मीटर ऊंचा हुआ करता था|
लेकिन, आज इसकी ऊंचाई सिर्फ 25-30 मीटर ही रह गई है| कहानी के अनुसार एक ऋषि के श्राप के चलते इस पर्वत की ऊंचाई आज तक घट रही है|
इस कथा के अनुसार, ऋषि पुलस्त्य एक बार गिरिराज पर्वत के नजदीक से होकर गुजर रहे थे| इस पर्वत की खूबसूरती देख वह दंग रह गए|
उन्होंने द्रोणांचल से आग्रह किया कि मैं काशी रहता हूं, इसलिए आप अपना पुत्र गोवर्धन मुझे दे दीजिए, जिसे मैं काशी में स्थापित कर दूँ|
ये बात सुनकर द्रोणांचल थोड़े दुखी हुए, हालांकि गोवर्धन ने संत से कहा, कि अगर आप एक वचन दे दें तो मैं आपके साथ चलने को तैयार हूं| इस पर पुलस्त्य ने भी वचन दे दिया|
गोवर्धन ने कहा कि मैं इतना विशालकाय हूँ आप मुझे कैसे काशी लेकर जाएंगे| पुलस्त्य ऋषि ने जवाब दिया कि मैं अपनी शक्ति के जरिए तुम्हें हथेली पर लेकर जाउंगा|

ऋषि का श्राप
जब वह जा रहे थे तो रास्ते में बृजधाम आया गोवर्धन को याद आया कि भगवान श्रीकृष्ण बाल्यकान में लीला कर रहे हैं|
गोवर्धन पर्वत धीरे-धीरे अपना भार बढ़ाने लगा, जिससे ऋषि का तपोबल भंग हो गया और पुलस्त्य ने पर्वत को वहीं रख कर अपना वचन तोड़ दिया|
ऋषि पुलस्त्य ने इसके बाद पर्वत को उठाने की कई बार कोशिश की, लेकिन वो उसे हिला तक न सके|
जिसके बाद गुस्से में आकर ऋषि पुलस्त्य ने गोवर्धन को शाप दे दिया, कि यह तुम्हारा विशालकाय स्वरूप रोज थोड़ा-थोड़ा कम होता रहेगा. कहा जाता है, कि तभी से गोवर्धन पर्वत का कद घटता जा रहा है|